भारतीय डाक विभाग के तरफ से कई बार डिलीवरी में देरी हो जाती है। ऐसे ही एक मामले में एक युवक ने कॉल लेटर देरी से मिलने पर विभाग के खिलाफ मुकदमा कर दिया। इसमें युवक ने कहा कि डाक विभाग की गलती से वह परीक्षाएं नहीं दे पाया। कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद युवक के मुकदमे पर फैसला सुनाया है।
हाइलाइट्स
- कॉल लेटर में देरी होने पर सुवक ने 2017 में ठोंका था केस
- युवक ने कहा था कि विभाग की देरी से उसकी परीक्षाएं छूटीं
- युवक ने इंडिया पोस्ट के खिलाफ कोर्ट में किया था मुकदमा
- पांच साल की सुनवाई के बाद सत्र अदालत ने सुनाया फैसला
क्या था पूरा मामला?
अहमदाबाद के हितेश मकवाना 2017 में डाक विभाग पर मुकदमा दायर किया था। उनकी शिकायत थी कि उन्होंने जून 2013 में रेलवे भर्ती बोर्ड की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। मुख्य परीक्षा 7 मार्च 2014 को निर्धारित थी, लेकिन डाक विभाग ने 22 मार्च 2014 को कॉल लेटर दिया, हालांकि रेलवे ने इसे 10 फरवरी 2014 को रवाना किया था। मकवाना ने पास इंडिया पोस्ट की लापरवाही का हवाला देने के लिए उनके पास एक और उदाहरण था। स्टेनोग्राफर की नौकरी के लिए कर्मचारी चयन आयोग की प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद वह मुंबई में मुख्य परीक्षा के लिए कॉल लेटर का इंतजार कर रहे थे। मुख्य परीक्षा 3 जून 2014 को हुई, लेकिन पत्र 4 जुलाई 2014 को दिया गया।
निकल गई परीक्षा में बैठने की उम्र
मकवाना ने कहा कि वह एक दशक से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। यदि वह मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता तो उसे किसी सरकारी विभाग में नौकरी मिल जाती। जब उन्होंने मुकदमा दायर किया तब उनकी उम्र 32 वर्ष हो गई और वह सरकारी नौकरियों के लिए निर्धारित आयु सीमा को पार कर गए। उनका कहना था कि डाक विभाग ने अपनी लापरवाही से उन्हें नुकसान पहुंचाया है। डाक विभाग ने स्वीकार कर लिया था कि कॉल लेटर देरी से पहुंचे थे, इसलिए उसे होने वाले नुकसान के लिए वह जिम्मेदार था। अपने बचाव में डाक विभाग ने भारतीय डाक अधिनियम की धारा 6 का हवाला दिया। इसमें विभाग ने कहा कि यह कानून उसे डाक पत्रों की देरी से डिलीवरी के लिए किसी भी दायित्व से छूट देता है। यदि विभाग के किसी अधिकारी ने धोखाधड़ी से या जानबूझकर देरी की गई है, तो केवल अधिकारी को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
विभाग ने कहा कि देर से डिलीवरी की शिकायत के बाद, एक सहायक अधीक्षक ने दिसंबर 2015 में संबंधित डाकिया के घर पर औचक निरीक्षण किया, लेकिन कोई भी लंबित लेख नहीं मिला। मकवाना ने लापरवाही का आरोप लगाया लेकिन अपने मुकदमे में डाकिया या किसी क्लर्क पक्ष को प्रतिवादी नहीं बनाया। शहर की एक सत्र अदालत ने मकवाना के मुकदमे को खारिज कर दिया क्योंकि भारतीय डाक अधिनियम की धारा 6 के प्रावधानों के तहत इंडिया पोस्ट को देर से डिलीवरी के लिए दायित्व से छूट है।
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