संन्यासियों-शैव नहीं, रामानंदीय परंपरा से होगी राम मंदिर में पूजा, जानिए क्या है पूजा पद्धति

संन्यासियों-शैव नहीं, रामानंदीय परंपरा से होगी राम मंदिर में पूजा, जानिए क्या है पूजा पद्धति

संन्यासियों-शैव नहीं, रामानंदीय परंपरा से होगी राम मंदिर में पूजा, जानिए क्या है पूजा पद्धति

Edited by विवेक मिश्रा | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 9 Jan 2024, 11:09 pm

राम मंदिर लगभग बनकर तैयार हो गया है। 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। ऐसे में ये चर्चा जोरों पर है कि आखिर राम मंदिर में किस परंपरा से पूजा होगी। अब इस पर से पर्दा उठ गया है। रामानंदीय परंपरा से राम मंदिर में पूजा होगी।

राम मंदिर समाचार
अयोध्या: अवधपुरी में उत्सव की तैयारी है। 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा है। इसको लेकर प्रदेश ही नहीं देशभर में उत्सव जैसा माहौल है। देश-विदेश से रामलला के लिए उपहार भेजे जा रहे हैं। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपतराय ने बताया कि राम मंदिर रामानंद परंपरा का है। ये न शैव, शाक्त का है और न ही सन्यासियों का है। ये बात उन्होंने राम मंदिर कैसी पूजा पद्धति होगी के सवाल पर कहा। साथ ही बताया कि देश के लगभग 125 संत परंपराओं के महात्मा आएंगे। सभी 13 अखाड़े और सभी 6 दर्शन के महापुरुष-धर्माचार्य आएंगे।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास बताते हैं कि रामानंदाचार्य एक भगवान और आचार्य के रूप में जन्म लिए। उन्होंने जो शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था और प्रचार-प्रसार किया, वह भगवान राम से संबंधित है, इसिलए जो राम मंत्र दिया जाता है और यहां प्रभु राम की पूजा, आराधना और अनुष्ठान किया जाता है। वह रामानंद महाराज द्वारा बताए गए नियम से किया जाता है। जो भी रामानंद वैष्ठव हैं, वह राम के अनुयायी हैं। इसी कारण से अयोध्या के सभी मंदिरों में इसी परंपरा से पूजा होती है।

अयोध्या के मंदिरों में रामानंदीय परंपरा से पूजा क्यों होती रही है? इसके पीछे भी एक कहानी है। कहते हैं कि 14वीं सदी में स्वामी रामानंदाचार्य के धार्मिक प्रचार प्रसार से हिंदू धर्म पर होने वाले मुगलकाल के आक्रांताओं के हमलों से बचाने की मुहिम चलाई गई थी। वैष्णव, शैव और शाक्त इन तीन धार्मिक परंपराओं में से स्वामी रामानंदाचार्य ने वैष्णव शैली की पूजा परंपरा को अपने प्रचार अभियान का साधन बनाया, जिसमें श्रीराम और सीता को अपना आराध्य ईष्ट मानकर पूजा की जाती है। राम की नगरी में अपने आराध्य देव श्रीराम की पूजा को श्रेष्ठ मानकर पूजा पद्धति को अपनाया गया।

रामानंदीय परंपरा की पूजा बाद में पूरे उत्तर भारत में अपना ली गई। उसी दौरान स्वामी रामानंदाचार्य के लाखों शिष्य बन गए, जिसमें सभी जाति और धर्म के लोग भी शामिल थे। कबीर, रसखान और रहीम भी उनके शिष्य बने थे। हांलाकि, दक्षिण के वैष्णव संत स्वामी रामानुजाचार्य की पूजा परंपरा में भगवान विष्णु और लक्ष्मी को ईष्ट आराध्य मानकर पूजा की जाती है जिनका अवतार भगवान श्रीराम और सीता को मानते हैं। इसलिए अयोध्या के तोताद्रि मठ, कोशलेस सदन और अशर्फी भवन जैसे कुछ मठो में रामानुजाचार्य परंपरा की पूजा पद्धति अपनाई जाती है।

दो वर्गों में बंटे हैं रामभक्त

अयोध्या में ही रामभक्त भी दो वर्गों में बंटकर अपने आराध्य को रिझाते हैं। एक रसिक तो दूसरा दास सम्प्रदाय है। रसिक भक्त माता सीता को अपने पक्ष का मानते हैं, इसलिए वह प्रभु राम को अपना पति मानते हैं। रसिक भक्त अपने नाम के साथ शरण जोड़ते हैं। वहीं, दास समुदाय के राम भक्त अपने आराध्य प्रभु राम को अपना राजा और अपने को उनका सेवक मानकर उनकी पूजा करते हैं और अपने नाम में दास जोड़ते हैं। दोनों समुदायों के भक्तों में भावनात्मक लगाव अलग होते हैं, लेकिन पूजा पद्धति एक ही तरह की होती है। इसमें सुबह ठाकुर जी को शयन से जगाने से लेकर सायं शयन करवाने तक के 16 अनुष्ठान करवाए जातें हैं।

शैव परंपरा क्या होती

भगवान महादेव और उनके सभी अवतारों को पूजा करने वालों को शैव कहते हैं। शैव के चार संप्रदाय बताए गए हैं। जिसमें शैव, पाशुपत, कालदमन, कापालिक है। शैव में शाक्त, नाथ, दशनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं, जो अलग-अलग तरीकों से भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं। शैवमत का मूलरूप ऋग्वेद में माना गया है। ऋग्वेद में रुद्रों की आराधना बताई गई है। जो आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है। लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराना में मिलता है।

विवेक मिश्रा के बारे में

विवेक मिश्रा

विवेक मिश्रा ड‍िज‍िटल कंटेंट प्रोड्यूसर

जन्मस्थली बाराबंकी है और कर्मस्थली तीन राज्य के कई शहर रहे हैं। 2013 में प्रिंट मीडिया से करियर की शुरुआत की। मप्र जनसंदेश, पत्रिका, हिंदुस्तान, अमर उजाला, दैनिक जागरण होते हुए नवभारत टाइम्स के साथ डिजिटल मीडिया में कदम रखा।Read More

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